Constitution Of India , Part -5, Article - 123 to 147
भारत का संविधान
विचार, अभिव्यक्ति, विश्चास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिए,
तथा उन सब में व्यक्ति की गरीमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता
बढाने के लिए
दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज २६ नवम्बर, १९४९ ई ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हाजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं|
भाग ५- संघ
अध्याय ३- राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां
*अनुच्छेद (आर्टीकल )-१२३,१२४,१२५,........ १४७
अनुच्छेद १२३:-
संसद् के विश्रांतिकाल में अध्यादेश प्रख्यापित करने की राष्ट्रपति की शक्ति :-
(१) उस समय समय को छोडकर जब संसद् के दोनों सदन सत्र में हैं, यदि किसी समय राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता हैं कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्तं कार्रवाई करना उसके लिए आवश्यक हो गया हैं तो वह ऐसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हो | (२) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वहीं बल और प्रभाव होगा जो संसद् के अधिनियम का होता हैं, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश :-(क) संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद् के पुन: समवेत होने से छह सप्ताह की समाप्ति पर या यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले दोनों सदन उसके अननुमोदन का संकल्प पारित कर देते हैं तो, इनमें से दुसरे संकल्प के पारित होने पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा ; और
(स्पष्टीकरण :- जहां संसद् के सदन. भिन्न-भिन्न तारीखों को पुन: समवेत होने के लिए, आहत किए जाते हैं वहां इस खंड के प्रयोजनों के लिए, छह सप्ताह की अवधि की गणन उने तारीखों में से पश्चातवर्ती तारीख से की जाएगी |
(३) यदि और जहां तक इस अनुच्छेद के अधीनअध्यादेश कोई ऐसा उपबंध करता हैं जिसे अधिनियमित करेन के लिए संसद् इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो और वहां तक वह अध्यादेश शून्य होगा |
(४) * * * *
अध्याय ४ - संघ की न्यायपालिका
अनुच्छेद १२४:-
उच्चतम न्यायलय की स्थापना और गठन:-
(१) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति और, जब तक संसद् विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती हैं तब तक, (तीस) से अनिधिक अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा |
(२) अनुच्छेद १२४ क में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीक्ष तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता हैं :
परन्तु, -
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;
(ख) किसी न्यायाधीश को खंड (४) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा |
(२-क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की आयु ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से अवधारित की जाएगी जिसका संसद् विधि द्वारा उपबंध करे
(३) कोई व्यक्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रुप में नियुक्ति के लिए तभी अर्हित होगा जब वह भारत का नागरिक हैं और:-
(क) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातर कम से कम पांच वर्षे तक न्यायाधीश रहा है ; या
(ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम सें कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा हैं ; या
(ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता है |
(स्पष्टीकरण १ - इस खंड में, "उच्च न्यायालय से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जो भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में अधिकारिता का प्रयोग करता हैं, या इस संविधान के प्रांरभ से पहले किसी भी समय प्रयोग करता था |)
(स्पष्टीकरण २ - इस खंड के प्रयोजन के लिए, किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात् ऐसा न्यायिक पद धारण किया हैं जो जिला न्यायाधीश के पद से अवर नहीं है |
(४) उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हाटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिए संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है |
(५) संसद् खंड (४) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता के अन्वेषण और साबित करने की प्रक्रिया का विध द्वारा विनियमन कर सकेगी |
(६) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररुप के अनुसार, श्पथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा |
(७) कोई व्यक्ति, जिसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रुप में पद धारण किया हैं, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय में या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन या कार्य नहीं करेगा |
१२४-क :- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग :-
(१) राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग नामक एक आयोग होगा, जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,
अर्थात :-
(क) भारत का मुख्य न्यायमूर्ति - अध्यक्ष, पदेन ;(ख) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से ठीक नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश - सदस्य पदेन
(घ) प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायमूर्ती और लोक सभा में विपक्ष के नेता या जहां ऐसा कोई विपक्ष का नेता नहीं है वहां, लोक सभा में सबसे बडे एकल विपक्षी दल के नेता से मिलकर बनने वाली समिति द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाने वाले दो विख्यात व्यक्ति - सदस्य :
परंतु यह और कि विख्यात व्यक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए नामनिर्दिष्ट किया जाएगा और पुन:नामनिर्देशन का पात्र नहीं होगा |
१२४-ख :- आयोग के कृत्य :-
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे, :-
(क) भारत के मुख्य न्यायमूर्ति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायामूर्तियो तथा उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशो के रुप में नियुक्ति के लिए व्यक्तियों की सिफारिश करना ;(ख) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्तियों और अन्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरण करने की सिफारिश करना ; और
(ग) यह सुनिश्चित करना कि वह व्याक्ति, जिसकी सिफारिश की गई है, सक्षम और सत्यनिष्ठ हैं |
१२४-ग :-विधि बनाने की संसद् की शक्ति-
अनुच्छेद १२५:-
न्यायाधीशों के वेतन, आदि :-
(१) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो संसद्, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता हैं तब तक ऐसे वेतनों का संदाय किया जाएगा जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं
(२) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों का तथा अनुपस्थिति छुट्टी और पेंशन के संबंध में ऐसे अधिकारों का, जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधारित किए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधारित नहीं किए जाते हैं तब तक ऐसे विशेषाधिकारों, भत्तों और अधिकारों का जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा :
परन्तु किसी न्यायाधीश के विशेषाधिकारों और भत्तों में तथा अनुपस्थिति छुट्टी या पेंशन के संबंध में उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा |
अनुच्छेद १२६:-
कार्यकारी मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति:-
अनुच्छेद १२७ :-
तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति :-
(१) यदि किसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोजित करने या चालू रखने के लिए उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्त न हो तो (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उसे किए गए किसी निर्देश पर राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से) और संबधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श करने के पश्चात्, किसी उच्च न्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए सम्यत्क रुप से अर्हित है और जिसे भारत का मुख्य न्यायमूर्ति नामोदिष्ट करे, न्यायालय की बैठकों में उतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, तर्द्थ न्यायाधीश के रुप में उपस्थित रहने के लिए लिखित रुप में अनुरोध कर सकेगा |
(२) इस प्रकार नामोदिष्ट न्यायाधीश का कर्तव्य होगा कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यो पर पूर्विकता देकर उस समय और उस अवधि के लिए, जिसके लिए उसकी उपस्थिति अपेक्षित है, उच्चतम न्यायालय की बैठकों में, उपस्थित हो और जब वह इस प्रकार उपस्थित होतो है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकारिता, शक्तियां ओर विशेषाधिकार होंगें और वह उक्त न्यायाधीश के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा |
अनुच्छेद १२८:-
उच्चतम न्यायालय की बैठकों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग ), किसी भी समय, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से किसी व्यक्ति से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका हैं ( या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश के रुप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यक्ति, जिससे इस प्रकार अनुरोध किया जाता हैं, इस प्रकार बैठने और कार्य करने के दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश की सभी अधिकरिता, शक्तियां और विशेषाधिकार होंगें, किन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा :
परन्तु जब तक यथापूर्वोक्त व्यक्ति उस न्यायालय के न्यायाधीश के रुप में बैठने और कार्य करने की सहमति नहीं दे देता हैं तब तब इस अनुच्छेद की कोई बात उससे ऐसा करने की अपेक्षा करने वाली नहीं समझी जाएगी |
अनुच्छेद १२९:-
उच्चतम न्यायालय का अभिलेख न्यायालय होना :-
उच्चतम न्यायालय अभिलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के लिए दंड देने की शक्ति सहित ऐसे न्यायालय की सभी शक्तियां होगी |अनुच्छेद १३०:-
उच्चतम न्यायालय का स्थान :-
उच्चतम न्यायालय दिल्ली में अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थानों में अधिविष्ट होगा जिन्हें भारत का मुख्य न्यायमूर्ति, राष्ट्रपति के अनुमोदन से समय-समय पर, नियम करे |अनुच्छेद १३१ :-
उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता :-
इस संविधान के उपबंधो के अधीन रहते हुए, -
(क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच, या
(ख) एक ओर भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों और दूसरी ओर एक या अधिक अन्य राज्यों के बीच, या
(ग) दो या अधिक राज्यों के बीच,
किसी विवाद में, यदि और जहां तक उस विवाद में (विधि का या तथ्य का) ऐसा कोई प्रश्न अंतर्वलित है जिस पर किसी विधिक अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर हैं तो और वहां तक अन्य न्यायालय का अपवर्जन करके उच्चतम न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता होगी :
(परंन्तु उक्त अधिकारिता का विस्तार उस विवाद पर नहीं होगा जो किसी ऐसी संधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या वैसी ही अन्य लिखत से उत्पन्न हुआहैं जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले की गई थी या निष्पादित की गई थी और ऐसे प्रारंभ के प्रश्चातद् प्रर्वतन में है या जो यह उपबंध करती है कि उक्त अधिकारिता का विस्तार ऐसे विवाद पर नहीं होगा |)
अनुच्छेद १३१ (क):-
केन्द्रींय विधियों की संविधानिक वैधता से संबंधित प्रश्नो के बारे में उच्चतम न्यायालय की अनन्य अधिकारिता | - संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम,१९७७ की धारा ४ द्वारा (१३-४-१९७८) से निरसित |
अनुच्छेद १३२:-
कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता -
(१) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी (यदि वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद (१३४-क) के अधीन प्रमाणित कर देता है ) कि उस मामलें में इस संविधान के निर्वचन के बारें में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है |
(२) * * * *
(३) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे दिया गया है वहां उस मामले में कोई पक्षकार इसा आधार पर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा कि पूर्वोक्त किसी प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है |स्पष्टीकरण - इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए , " अंतिम आदेश् " पद के अंतर्गत ऐसे विवाद्यक का विनिश्चय करने वाला आदेश है जो, यदि अपीलार्थी के पक्ष में विनिश्चित किया जाता हैं तो, उस मामले के अंतिम निपटारे के लिए पर्याप्त होगा |
अनुच्छेद १३३ :-
उच्च न्यायालयों से सिविल विषयों से संबधित अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता -
(१) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्ययालय की सिविल कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्ययालय में होगी (यदि उच्च न्यायालय अनुच्छेद (१३४-क) के अधीन प्रमाणित कर देता है कि) :-
(क) उस मामले में विधि का व्यापक महत्व का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है ; और
(ख) उच्च्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है )
(२) अनुच्छेद १३२ में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय में खंड (१) के अधीन अपील करने वाला कोई पक्षकार ऐसी अपील के आधारों में यह आधार भी बता सकेगा कि इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है |
(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब तक नहीं होगी जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे |
अनुच्छेद १३४ :-
दांडिक विषयों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता :-
(१) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील उच्चतम न्यायालय मे होगी यदि -
(क) उस उच्च न्यायालय ने अपील में किसी अभियुक्त व्याक्ति की दोषमुक्ति के आदेश को उलट दिया है और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है ; या
(ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्राधिकार के अधीनस्थ किसी न्यायालय से किसी मामले को विाचारण के लिए अपने पास मंगा लिया है और ऐसे विचारण में अभियुक्त व्यक्ति को सिद्धदोष ठहराया है और उसको मृत्यु दंडादेश दिया है ; या
(ग) वह उच्च न्यायालय (अनुच्छेद (१३४-क) के अधीन प्रमाणित कर देता है ) कि मामला उच्चतम न्यायालय में अपील किए जाने योग्य है :
परन्तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंधो के अधीन रहते हुए होगी जो अनुच्छेद १४५ के खंड (१) के अधीन इस निमित्त बनाए जाएं और ऐसी शर्तो के अधीन रहते हुए होगी जो उच्च न्यायालय नियत या अपेक्षित करे |
(२) संसद् विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील ऐसी शर्तो और परिसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट की जाएं, ग्रहण करने और सुनने की अतिरिक्त शक्ति दे सकेगी |
अनुच्छेद १३४-क :-
उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र -
प्रत्येक उच्च् न्यायालय, जो अनुच्छेद १३२ के खंड (१) या अनुच्छेद १३३ के खंड (१) अनुच्छेद १३४ के खंड (१) में निर्दिष्ट निर्णय, डिक्री, अंतिम आदेश या दंडादेश पारित करता है या देता है, इस प्रकार पारित किए जाने या दिए जाने के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र, इस प्रश्न का अवधारण कि उस मामलें के संबंध मे, यथास्थिति, अनुच्छेद १३२ के खंड (१) या अनुच्छेद १३३ के खंड (१) या अनुच्छेद १३४ के खंड (१) के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट प्रकृति का प्रमाणपत्र दिया जाए या नहीं, -(क) यदि वह ऐसा करना ठिक समझता हैं तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और
(ख) यदि ऐसा निर्णय, डिक्री, अंतिम आदेश या दंडादेश पारित किए जाने या दिए जाने के ठीक पश्चात् व्यथित पक्षकार द्वारा या उसकी और से मौखिक आवेदन किया जाता है तो करेगा )
अनुच्छेद १३५ :-
विद्यमान विधि के अधीन फेडरल न्यायालय की अधिकारिता और शक्तियों का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना -
जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय को भी किसी ऐसे विषय के संबंध में, जिसको अनुच्छेद १३३ या अनुच्छेद १३४ के उपबंध लागू नही होते है, अधिकारिता और शक्तियां होगी यदि उस विषय के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी विद्यमान विधि के अधीन अधिकारिता और शक्तियां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थी |
अनुच्छेद १३६ :-
अपील के लिए उच्चतम न्यायालय की विशेष इजाजत :-
(१) इस अध्याय में किसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा किसी वाद या मामले में पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, अवधारण, दंडादेश या आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा |(२) खंड (१) की कोई बात सशस्त्र बलों से संबंधित किसी विधि द्वारा या उसके अधीन गठित किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित किए गए या दिए गए किसी निर्णय, अवधारण, दंडादेश या आदेश को लागू नहीं होगी |
अनुच्छेद १३७ :-
निर्णयों या आदेशों का उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विलोकन -
संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के या अनुच्छेद १४५ के अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधो के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए निर्णय या दिए गए आदेश का पुनर्विलोकन करने की शक्ति होगी |अनुच्छेद १३८ :-
उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता की वृद्धि -
(१) उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के विषयों में से किसी संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियां होगी जो संसद् विधि द्वारा प्रदान करे |(२) यदि संसद् विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अधिकारिता और शक्तियों के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को किसी विषय के संबंध में ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तिायां होगी जो भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करे |
अनुच्छेद १३९ :-
कुछ रिट निकालने की शक्तियों का उच्चतम न्यायालय को प्रदत्त किया जाना -
संसद् विधि द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद ३२ के खंड (२) में वर्णित प्रयोजनों से भिन्न किन्ही प्रयोजनो के लिए एैसे निदेश, आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा और उप्रेषण रिट है, या उनमें से कोई निकालने की शक्ति प्रदान कर सकेगी |अनुच्छेद १३९-क :-
कुछ मामलों का अंतरण -
(१) यदि ऐसे मामले, जिनमें विधि के समान या सरत: समान प्रश्न अंतर्वलित है, उच्चतम न्यायालय के और एक या अधिक उच्च न्यायालयों के अथवा दो या अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं और उच्चतम न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवादी द्वारा या ऐसे किसी मामले के किसी पक्षकार द्वारा किए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता हैं कि ऐसे प्रश्न व्यापक महत्त्व के सारवान् प्रश्न हैं तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित मामले या मामलों को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी मामलों को स्वंय निपटा सकेगा :परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त विधि के प्रश्नो का अवधारण करने के पश्चात् ऐसे प्रश्नो पर अपने निर्णय की प्रतिलिपि सहित उस उच्च न्यायालय को, जिससे मामला मंगा लिया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे निर्णय के अनुरुप निपटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा |
(२) यदि उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्देश की पूर्ति के लिए ऐसा करना समीचीन समझता है तो वह किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले, अपील या अन्य कार्यवाही का अंतरण किसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा |
अनुच्छेद १४० :-
उच्चतम न्यायालय की आनुषंगिक शक्तियां-
संसद्, विधि द्वारा, उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनुपूरक शक्तियां प्रदान करने के लिए उपबंध कर सकेगी जो इस संविधान के उपबंधो में से किसी से असंगत न हो और जो उस न्यायालय को इस संविधान द्वारा या इसकेअधीन प्रदत्त अधिकारिता का अधिक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हो |
अनुच्छेद १४१ :-
उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि का सभी न्यायालयों पर आवद्धकर होना -
उच्चतम न्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर आबद्धकर होगी |
अनुच्छेद १४२ :-
उच्चतम न्यायालय की डिक्रियों और आदेशों का प्रवर्तन और प्रकटीकरण आदि के बारे में आदेश -
(१) उच्चतम न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते हुए ऐसी डिक्रि पारित कर सकेगा या ऐसा आदेश कर सकेगा जो उसके समक्ष लंबित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो और इस प्रकार पारित डिक्रि या किया गया आदेश भारत के राज्यक्षेत्र मे सर्वत्र ऐसी रीति से, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जाए, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक, ऐसी रीति से जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा |(२) संसद् द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधो के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्ही दस्तावेजों के प्रकटीकरण या पेश कराने के अथवा अपने किसी अवमान का अन्वेषण करने या दंड देने प्रयोजन के लिए कोई आदेश करने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी |
अनुच्छेद १४३ :-
उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की राष्ट्रपति की शक्ति -
(१) यदि किसी समय राषट्रपति को प्रतीत होता है कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआहै या उत्पन्न होने की संभावना है, जो ऐसी प्रकृति का और ऐसे व्यापक महत्व का हैं कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को विचार करने के लिए उस न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित कर सकेगा |
(२) राष्ट्रपति अनुच्छेद १३२ के परन्तुक में किसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के विवाद को, जो (उक्त परन्तुक मे वर्णित है, राय देने के लिए उच्चतम न्यायालय को निर्देशित कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात् जो वह ठीक समझता है, राष्ट्रपति को उस पर अपनी राय प्रतिवेदित करेगी |
अनुच्छेद १४४ :-
सिविल और न्यायिक प्राधिकारियों द्वारा उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य किया जाना-
भारत के राज्यक्षेत्र के सभी सिविल और न्यायिक प्राधिकारी उच्चतम न्यायालय की सहायता में कार्य करेंगे |
अनुच्छेद १४४-क :-
विधियों की संविधानिका वैधता से संबंधित प्रश्नों के निपटारे के बारे में विशेष उपबंध- संविधान (तैतालीसवां संशोधन) अधिनियम, १९७७ की धारा ५ द्वारा (१३-४-१९७८ से ) निरसित |
अनुच्छेद १४५ :-
न्यायालय के नियम आदि -
(१) संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधो के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रपतिके अनुमोदन से न्यायालय की पद्धति और प्रक्रियाके, साधारणतया, विनियमन के लिए नियम बना सकेगा जिसके अंतर्गत निम्नलिखित भी है, अर्थात :-(क) उस न्यायालय में विधि-व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों के बारे में नियम ;
(ख) अपीलें सुनने के लिए प्रक्रिया के बारे में और अपीलों संबंधी अन्य विषयों के बारे मे, जिनके अंतर्गत वह समय भी है जिसके भीतर अपीलें उस न्यायालय में ग्रहण की जानी हैं, नियम ;
(ग) भाग ३ द्वारा प्रदत्त अधिकारो में से किसी का प्रवर्तन कराने के लिए उस न्यायालय में कार्यवाहियों के बारे में नियम ;
(घ) अनुच्छेद १३४ के खंड (१) के उपखंड (ग) के अधीन अपीलों को ग्रहण किए जाने के बारे में नियम ;
(ड) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए किसी निर्णय या किए गए आदेश का जिन शर्तो के अधीन रहते हुए पुनर्विलोकन किया जा सकेगा उनके बारेमें और ऐसे पुनर्विलोकन के लिए प्रक्रियां के बारे में, जिसके अतंर्गत वह समय भी है जिसके भीतर ऐसे पुनर्विलोकन के लिए आवेदन उस न्यायालय में ग्रहण किए जाने है, नियम;
(च) उस न्यायालय में किन्ही कार्यवाहियों के और उनके आनुषंकगक खर्चे के बारे में, तथा उसमें कार्यवाहियों के संबंध में प्रभारित की जाने वाली फीसों के बारे में नियम ;
(छ) जमानत मंजूर करने के बारे में नियम ;
(ज) कार्यवाहियों को रोकने के बारे में नियम ;
(झ) जिस अपील के बारे में उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि वह तुच्छ या तंग करने वाली है अथवा विलंब करने के प्रयोजन से की गई है, उसके सक्षिप्त अवधारण के लिए उपबंध करने वाले नियम ;
(त्र) अनुच्छेद ३१७ के खंड (१) में निर्दिष्ट जांचों के लिए प्रक्रिया के बारे में नियम
(२) खंड (३) के उपबंधो के अधीन रहते हुए, इस अनुच्छेद के अधीन बनाए गए नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियतम कर सकेगे जो किसी प्रयोजन के लिए बैठेगे तथा एकल न्यायाधीशों और खंड न्यायालयों की शक्ति के लिए उपबंध कर सकेंगे |
परन्तु जहां अनुच्छेद १३२ से भिन्न इस अध्याय के उपबंधो के अधीन अपील की सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीशों से मिलकर बना है और अपील की सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाताहै कि अपील में संविधान के निर्वचन के बारे मे विधि का ऐसा सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है जिसका अवधारण अपील के निपटारे के लिए आवश्यक है वहां वह नयायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतर्वलित करने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिए इस खंड की अपेक्षानुसार गठित किया जाता है, उसकी राय के लिए निर्देशित करेगा और ऐसी राजय की प्राप्ति पर उस अपील को उस राय के अनुरुप निपटाएगा |
(४) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक निर्णय खुले न्यायालय में ही सुनाएगा, अन्यथा नही और अनुच्छेद १४३ के अधीन प्रत्येक प्रतिवेदन खुले न्यायालय में सुनाई गई राय के अनुसार ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं |
(५) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक निर्णय और ऐसी प्रत्येक राय, मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों की बहुसंख्या की सहमति से ही दी जाएगी, अन्यथा नहीं, किन्तु इस खंड की कोई बात किसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नही है, अपना विसम्मत निर्णय या राय देने से निवारित नहीं करेगी |
अनुच्छेद :- १४६
उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक तथा व्यय-
(१) उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियां भारत का मुख्य न्यायमूर्ति करेगा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अधिकारी करेगा जिसे वह निदिष्ट करे:परंन्तु राष्ट्रपति नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं दशाओं में, जो नियम में विनिर्दिष्ट की जाएं, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहले से ही न्यायालय से संलग्न नहीं है, न्यायालय से संबंधित किसी पद पर संघ लोक सेवा अयोग से परामर्श करके ही नियुक्त कया जाएगा, अन्यथा नहीं |
(२) संसद् द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधो के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों की सेवा की शर्ते ऐसी होंगी जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति ने इस प्रयोजन के लिए नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया है, बनाए गए नियमों द्वारा विहित की जाएं :
परंन्तु इस खंड के अधीन बनाए गए नियमों के लिए, जहां तक वेतनों, भर्ती, छुट्टी या पेंशनों से संबंधित हैं, राष्ट्रपति के अनुमोदन की अपेक्षा होगी |
(३) उच्चतम न्यायालय के प्रशासनिक व्यय, जिनके अतंर्गत उस न्यायालय के अधिकारियों और सेवकों को या उनके संबंध में संदेय सभी वेतन, भत्ते और पेंशन है, भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और उस न्यायालय द्वारा ली गई फीसें और अन्य धनराशियां उस निधि का भाग होंगी |
अनुच्छेद :- १४७
निर्वचन:-
इस अध्याय में और भाग ६ के अध्याय ५ में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत भारत शासन अधिनियम, १९३५ के (जिसके अंतर्गत उस अधिनियम की संशोधक या अनुपूरक कोई अधिनियमिति है) अथवा किसी सपरिषद् आदेश या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ के या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश के निर्वचन के बारे में विधि के किसी सारवान् प्रश्न के प्रति निर्देश हैं |
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