Constitution Of India , Part -5, Article - 79 to 122


  भारत का संविधान 


हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा समस्त नागरिंकों को:

सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, 

विचार, अभिव्यक्ति, विश्चास, धर्म 

और उपासना की स्वतंत्रता, 

प्रतिष्ठा और अवसर की समता 

प्राप्त कराने के लिए, 

तथा उन सब में व्यक्ति की गरीमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता

बढाने के लिए

दृढसंकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज  २६ नवम्बर, १९४९ ई ( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हाजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और  आत्मार्पित करते हैं|




भाग ५-  संघ

 अध्याय  २ - संसद्

साधारण

*अनुच्छेद (आर्टीकल )- ७९,८०, ८१, ८२....  १२२


अनुच्छेद ७९:-

संसद् का गठन :- संघ के लिए एक संसद् होगी जो रष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोक सभा होंगे |



अनुच्छेद ८० :-

राज्य सभा की संरचना:-

 (१) राज्य सभा:-

     (क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (३) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और

    (ख) राज्यों के(और संघ राज्यक्षेत्रों के ) दो सौ अडतीस से अनधिक प्रतिनिधियों, 

          से मिलकर बनेगी |

(२) राज्य सभा में राज्यों के और ( और संघ राज्यक्षेत्रो के) प्रतिनिधियों द्वारा भरे जाने वाले स्थानों का आबटंन चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा |

(३) राष्ट्रपति द्वारा खंड (१) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होगें जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, 

अर्थात् :- साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा

(४) राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा |

(५)  राज्य सभा में (संघ राज्यक्षेत्रों) के प्रतिनिधि ऐसी रिति से चुने जाएंगे जो संसद् विधि द्वारा विहित करे |


अनुच्छेद ८१:-

लोक सभा की संरचना:-

(१) अनुच्छेद ३३१ के उपबंधो के अधीन रहते हुए लोक सभा:-

    (क) राज्यों  में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए (पांच सौ तीस ) से अनधिक सदस्यों,             और

     (ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद् विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए  (बीस) से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी |

(२) खंड (१) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए:-

     (क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, और

    (ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रिति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो :

(परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध किसी राज्य को लोक सभा में स्थानों के आबंटन के प्रयोजन के लिए तब तक लागू नहीं होंगे जब तक उस राज्य की जनसंख्या साठ लाख से अधिक नहीं हो जाती है |)

(३) इस अनुच्छेद में, "जनसंख्या" पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत हैं जिसके सुसंगत आंकडे प्रकाशित हो गए है:

( परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकडे  प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन् (२०२६) के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकडे प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, (यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह, :-

(i) खंड (२) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए १९७१ की जनगणना के प्रति निर्देश है ; और

(ii) खंड (२) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए (२००१) की जनगणना के प्रति निर्देश है |)



अनुच्छेद ८२:-

प्रत्येक जनगणना के पश्चात् पुन: समायेजन:-

प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर राज्यों को लोक सभा में स्थानों के आबटंन और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जाएगा जो संसद् विधि द्वारा अवधारित करे :

परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से लोक सभा में प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पडेगा जब तक उस समय विद्यमान लोक सभा का विघटन नहीं  हो जाता है :

( परन्तु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के लिए कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान है :

परन्तु यह और भी कि जब तक सन् (२०२६) के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकडे प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक (इस अनुच्छेद के अधीन,-

(i) राज्यों को लोक सभा में १९७१ की जनगणना के आधार पर पुन: समायेजित स्थानों के आबंटन का ; और

(ii) प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजन का, जो (२००१) की जनगणना के आधार पर पुन: समायोजित किए जाएं,

 पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा |)



अनुच्छेद ८३:-

संसद् के सदनों की अवधि:-

 (१) राज्य सभा का विघटन नही होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथा संभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, संसद् द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधो के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएंगे |


(२) लोक सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से (पांच वर्ष) तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और (पांच वर्ष) की उक्त अवधि की सामाप्ति का परिणाम लोक सभा का विघटन होगा :

 परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्धोषणा प्रवर्तन में हे तब, संसदा् विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्धोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा |



अनुच्छेद ८४:-

संसद् की सदस्यता के लिए  अर्हता :-

कोई व्यक्ति संसद् के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब -

(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्याक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररुप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान  करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है :

(ख) वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोक सभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष् की आयु का है ; और

(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं है जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाएं |



अनुच्छेद ८५:-

संसद् के सत्र, सत्रावसान और विघटन:-

(१) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद् के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र  की अंतिम बैठक  और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा |

(२) राष्ट्रपति, समय-समय पर -

(क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ;

 (ख) लोक सभा का विघटन कर सकेगा |



अनुच्छेद ८६:-

सदनों मे अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार :-

 (१) राष्ट्रपति, संसद् के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिाभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा |

(२) राष्ट्रपति, संसद् में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, संसद् को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने  के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा |



अनुच्छेद ८७:-

राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण :-

 (१) राष्ट्रपति, ( लोक सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में) एक साथ समवेत संसद् के दोनों सदनों में अभिभाषण करेंगा और संसद् को उसके आह्वान के कारण बताएगा |

(२) प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमो द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उपबंध किया जाएगा |



अनुच्छेद ८८:-

सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार :-

 प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद् की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रुप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा |



संसद् के अधिकारी


अनुच्छेद ८९:-

राज्य सभा का सभापति और उपसभापति:-

(१) भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा |

(२) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने किसी सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी और जब-जब उपसभापति का पद रिक्त होता है तब-तब राज्य सभा किसी अन्य सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी |



अनुच्छेद ९०:-

उपसभापति का पद रिक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना :-

राज्य सभा के उपसभापति के रुप  में पद धारण करने वाला सदस्य:-

 (क) यदि राज्य सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा ;

(ख) किसी भी समय सभापति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ;  और 

(ग) राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :

 परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के लिए कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो |



अनुच्छेद ९१:-

सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रुप में कार्य करने की उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति:-

 (१) जब सभापति का पद रिक्त है या ऐसी अवधि में जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रुप  में कार्य कर रहा हे या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, तब उपसभापति या यदि उपसभापति का पद भी रिक्त है तो, राज्य सभा का ऐसा सदस्य जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करें, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा |

(२) राज्य सभा की किसी बैठक से सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो राज्य सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो राज्य सभा द्वारा अवधारित किया जाए, सभापति के रुप में कार्य करेगा |



अनुच्छेद ९२:-

जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उसका पीठासीन न होना:-

(१) राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद ९१ के खंड (२) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगें जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है |

(२) जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचारधीन है तब सभापति को राज्य सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने के अधिकार होगा, किन्तु वह अनुच्छेद १०० में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर, मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा |



अनुच्छेद ९३:-

लोक सभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष:-

लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब लोक सभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष्ज्ञ चुनेगी |



अनुच्छेद ९४:-

अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना:- लोक सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रुप में धारण करने वाला सदस्य :-

(क) यदि लोक सभा का सदस्य नहीं रहता है तो अपना पद रिक्त कर देगा ;

(ख) किसी भी समय, यदि वह सदस्य अध्यक्ष हैं तो उपाध्यक्ष  को संबोधित और यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है तो अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और 

(ग) लाक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत  से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा ;

 परन्तु यह और कि जब तक कभी लोक सभा का विघटन किया जाता है तो विघटन के पश्चात् होने वाले लोक सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त नहीं करेगा |



अनुच्छेद ९५:-

अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रुप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति:-

(१) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करें, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा |

(२) लोक सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो लोक सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रुप में कार्य करेगा |



अनुच्छेद ९६:-

जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उसका पीठासीन न होना:-

 (१) लोक सभा की किसी बैठक मैं, जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का संकल्प विचारधीन है तब अध्यक्ष, या जब उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचारधीन है तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद ९५ के खंड (२) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक से संबंध मे वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित है |

(२) जब अध्यक्ष को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प लोक सभा में विचारधीन हैं तब उसको लोक सभा  में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा और वह अनुच्छेद १०० में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर प्रथमत: ही मत देने का हकदार होगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में मत देने का हकदार नहीं होगा |



अनुच्छेद ९७:-

सभापति और उपसभापति तथा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते:-

राज्य सभा के सभापति और उपसभापति को तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को, ऐसे वेतन और भत्तों का जो संसद्, विधि द्वरा, नियत करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भत्तों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, सदांय किया जाएगा |



अनुच्छेद ९८:-

संसद् का सचिवालय:-

(१) संसद् के प्रत्येक सदन का पृथक् सचिवीय कर्मचारिवृंद होगा :

परन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद् के दोनों सदनों के लिए सम्मिलित पदों के सृजन को निवारित करती है |

(२) संसद्, विधि द्वरा, संसद् के प्रत्येक सदन के सचिवीय कर्मचारिवृंद में भर्ती का और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनियमन कर सकेगी |

(३) जब तक संसद् खंड (२) के अधीन उपबंध नहीं करती है तब तक राष्ट्रपति, यथास्थिति, लोक सभा के अध्यक्ष या राज्य सभा के सभापति से परामर्श करने के पश्चात्  लोक सभा के या राज्य सभा के सचिवीय कर्मचारिवृंद में भर्ती के और नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तो के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए नियम उक्त खंड के अधीन बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहतें हुए प्रभावी होंगे |



कार्य संचालन


अनुच्छेद ९९:-

सदस्यों द्वारा शपथ य प्रतिज्ञान:-

संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्ररुप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा |



अनुच्छेद १००:-

सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति:-

(१) इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रुप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोडकर, उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा |

 सभापति या अध्यक्ष, अथवा उस रुप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमत: मत नही देगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा |

(२) संसद् के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद् की कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी |

(३) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद् के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी |

(४) यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नही है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रुप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थागित कर दे य अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नही हो जाती है |



सदस्यों की निरर्हताएं


अनुच्छेद १०१:-

स्थानों का रिक्त होना :-

(१) कोई व्यक्ति संसद् के दोनों सदनों का सदस्य नहीं होगा और जो व्यक्ति दोनों सदनों का सदस्य चुन लिया जाता है उसके एक या दूसरे सदन के स्थान को रिक्त करने के लिए संसद् विधि द्वारा उपबंध करेगी |

(२) कोई व्यक्ति संसद् और किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य नहीं होगा और यदि कोई व्यक्ति संसद् और (किसी राज्य) के विधान मंडल के किसी सदन, दोनों का सदस्य चुन लिया जाता है तो ऐसी अवधि की समाप्ति के पश्चात् जो राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए, संसद् में ऐसे व्यक्ति का स्थान रिक्त हो जाएगा यदि उसने राज्य के विधान-मंडल में अपने स्थान को पहले ही नहीं त्याग दिया है |

(३) यदि संसद् के किसी सदन का सदस्य:-

    (क) (अनुच्छेद १०२ के खंड (१) या खंड (२) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो जाता है, या

    (ख) यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर देता है और उसका त्यागपत्र, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो ऐसा होने पर उसका स्थान रिक्त हो जाएगा :

(परन्तु उपखंड (ख) में निर्दिष्ट त्यागपत्र की दशा में, यदि प्राप्त जानकारी से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात्, जो वह  ठीक समझे, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा त्यागपत्र स्वैच्छिक या असली नहीं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नहीं करेगा |

(४) यदि संसद् के किसी सदन का कोई सदस्य साठ दिन की अवधि तक सदन की अनुज्ञा के बिना उसके सभी अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है तो सदन उसके स्थान को रिक्त घोषित कर सकेगा :

परन्तु साठ दिन की उक्त अवधि की संगणना करने में किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसके दौरान सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित रहता है |



अनुच्छेद १०२:-

 सदस्यता के लिए निरर्हताएं:-

(१) कोई व्यक्ति संसद् के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा:-

    (क) यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोडकर, जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना संसद् ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;

    (ख) यदि वह विकृतचित है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है ;

    (ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है ;

    (घ)यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है ;

    (ङ) यदि वह संसद् द्वरा बनाई गई किसी विधि द्वरा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है |

(स्पष्टीकरण- इस खंड के प्रयोजनों के लिए,) कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है |

(२) कोई व्यक्ति संसद् के किसी सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा  यदि वह दसवी अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है |



अनुच्छेद १०३:-

सदस्यों की निरर्हताओं से संबंधित प्रश्नों पर विनिश्चय:-

(१) यदि यह प्रश्न उठता है कि संसद् के किसी सदने का कोई सदस्य अनुच्छेद १०२ के खंड (१) में वर्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त  हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राष्ट्रपति को विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा |

(२) ऐसे किसी प्रश्न पर विनिश्चय करने के पहले राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की राय लेगा और ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा |



अनुच्छेद १०४:-

अनुच्छेद ९९ के अधीन शपथ लेने या प्रतिज्ञान करने से पहले या अर्हित न होते हुए  या निरर्हित किए जाने पर बैठने और मत देने के लिए शास्ति:-

यदि संसद् के किसी सदन में कोई व्यक्ति अनुच्छेद ९९ की अपेक्षाओं का अनुपालन करने से पहले, या वह जानते हुए कि मैं उसकी सदस्यता के लिए अर्हित नहीं हूं या निरर्हित कर दिया गया हूं या संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों द्वारा ऐसा करने से प्रतिषिद कर दिया गया है, सदस्य के रुप में बैठता है या मत देता है तो वह प्रत्येक दिन के लिए, जब वह इस प्रकार बैठता है या मत देता है, पांच सौ रुपए की शास्ति का भागी होगा जो संघ को देय ऋृण के रुप में वसूल की जाएगी |



संसद् और उसके सदस्यों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तिायां


अनुच्छेद १०५ :-

संसद् के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियां विशेषधिकार आदि:-

(१) इस संविधान के उपबंधो और संसद् की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए, संसद् में वाक्त्-स्वातंत्र्य होगा |

(२) संसद् में या उसकी किसी समिति में संसद् के किसी सदस्य द्वारा कही गई किसी बात या दिए  गए किसी मत के संबंध में उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी और किसी व्यक्ति के विरुद्ध संसद् के किसी सदन के प्राधिकार द्वारा या उसके आधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के संबंध में इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी |

(३) अन्य बातों में संसद् के प्रत्येक सदन की और प्रत्येक सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियां, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां ऐसी होंगी जो संसद्, समय-समय पर, विधि द्वारा, परिनिश्चित करे और जब तक वे इस प्रकार  परिनिश्चित नहीं की जाती हैं तब तक (वही होगी जो संविधान{चवालीसवां संशोधन} अधिनियम, १९७८ की धारा १५ के प्रवृत्त होने से ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थी | )

(४) जिन व्यक्तियों को इस संविधान के आधार पर संसद् के किसी सदन या उसकी किसी समिति में बोलने का और उसकी कार्यवाही में अन्यथा भाग लेने का अधिकार है, उनके संबंध में खंड (१), और खंड (२) और खंड (३) के उपबंध उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे संसद् के सदस्यो के संबंध में लागू होते है |



अनुच्छेद १०६:-

सदस्यों के वेतन और भत्ते:-

संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते, जिन्हें संसद्, समय-समय पर, विधि द्वारा, अवधारित करे और जब तक इस संबंध में इस प्रकार उपबंध नही किया जाता है तब तक ऐसे भत्ते, ऐसी दरों से और ऐसी शर्तो पर, जो भारत डोमिनियन की संविधान सभा के सदस्यों को इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले लागू थी, प्राप्त करने के हकदार होंगे |



विधायी प्रक्रिया

अनुच्छेद १०७ :-

विधेयकों के पुर:स्थापन और पारित किए जाने के संबंध में उपबंध:-

(१) धन विधेयकों और अन्य वित्त विधेयकों के संबंध में अनुच्छेद १०९ और अनुच्छेद  ११७ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद् के किसी भी सदन में आरंभ हो सकेगा |

(२) अनुच्छेद १०८ और अनुच्छेद १०९ के उपबंधो के अधीन रहते हुए, कोई विधेयक संसद् के सदनों द्वारा तब तक पारित किया गया नही समझा जाएगा जब तक संशोधन के बिना या केवल ऐसे संशोधनों सहित, जिन पर दोनों सदन सहमत हो गए है, उस पर दोनों सदन सहमत नहीं हो जाते है |

(३) संसद् में लंबित विधेयक सदनों के सत्रावसान के कारण व्यपगत नहीं होगा |

(४) राज्य सभा में लंबित विधेयक, जिसको लोक सभा ने पारित नहीं किया है, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा |

(५) कोई विधेयक, जो लोक सभा में लंबित है या जो लोक सभा द्वारा पारित कर दिया गया है और राज्य सभा में लंबित है, अनुच्छेद १०८ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सभा के विघटन पर व्यपगत हो जाएगा |



अनुच्छेद १०८ :-

कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक:-

(१) यदि किसी विधेयक के एक सदन द्वारा पारित किए जाने और दूसरे सदन को पारेषित किए जाने के पश्चात् :-

    (क) दूसरे सदन द्वरा विधेयक अस्वीकर कर दिया गया है, या 

    (ख) विधेयक में किए जाने वाले संशोधनों के बारे में दोनों सदन अंतिम रुप से असहमत हो गए है, या 

    (ग) दूसरे सदन को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत गए है, तो उस दशा के सिवाय, जिसमें लोक सभा का विघटन होने के कारण विधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रपति विधेयक  पर विचार-विमर्श करने और मत देने के प्रयोजन के लिए सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहत करने के अपने आशय की सूचना, यदि वे बैठक में हैं तो संदेश द्वरा या यदि वे बैठक में नहीं है तो लोक अधिसूचना द्वारा देगा:

 परन्तु इस खंड की कोई बात धन विधेयक को लागू नहीं होगी |

(२) छह मास की ऐसी अवधि की गणना करने में, जो खंड (१) में निर्दिष्ट है, किसी ऐसी अवधि को हिसाब में नहीं लिया जाएगा जिसमें उक्त खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट सदन सत्रावसित या निरंतर चार से अधिक दिनों के लिए स्थगित कर दिया जाता है |

(३) यदि राष्ट्रपति ने खंड (१) के अधीन सदनों को संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहत करने के अपने आशय की सूचना दे दी है तो कोई भी सदन विधेयक पर आगे कार्यवाही नहीं करेंगा, किन्तु राष्ट्रपति अपनी अधिसूचना की तारीख के पश्चात् किसी समय सदनों को अधिसूचना में विनिर्दिष्ट प्रयोजन के लिए संयुक्त बैठक में अधिवेशित होने के लिए आहूत कर सकेगा और, यदि वह ऐसा करता है तो, सदन तदनुसार अधिवेशित होगे |

(४) यदि सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक ऐसे संशोधनों सहित, यदि कोई हो, जिन पर संयुक्त बैठक में सहमति हो जाती है, दोनों सदनों के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो इस संविधान के प्रयोजनों के लिए वह दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा:

परन्तु संयुक्त बैठक में :-

(क) यदि विधेयक एक सदन से पारित किए जानें पर दूसरे सदन द्वारा संशोधनों सहित पारित नहीं कर दिया गया है और उस सदन कों, जिसमें उसका आरंभ हुआ था, लौटा नहीं दिया गया है तो ऐसे संशोधनों से भिन्न (यदि कोई हो), जो विधेयक के पारित होने में देरी के कारण आवश्यक हो गए हे, विधेय‍ेक में कोई और संशोधन प्रस्थापित नहीं किया जाएगा:

    (ख) यदि विधेयक इस प्रकार पारित कर दिया है और लौटा दिया गया है तो विधेयक में केवल पूर्वोक्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन विषयों से सुसंगत है जिन पर सदनों में सहमति नहीं हुई है, प्रस्थापित किए जाएंगे, और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कौन से संशोधन इस खंड के अधीन ग्राह्य है |

    (५) सदनों की संयुक्त बैठक मैं अधिवेशित होने के लिए आहूत करने के अपने आशय की राष्ट्रपति की सूचना के पश्चात्, लोक सभा का विघटन बीच  में हो जाने पर भी, इस अनुच्छेद के अधीन संयुक्त बैठक हो सकेगी और उसमें विधेयक पारित हो सकेगा |



अनुच्छेद १०९ :-

धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया:-

(१) धन विधेयक राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा |

(२) धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किए जाने के पश्चात् राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित किया जाएगा और राज्य सभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशी सहित लोक सभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा की सभी या किन्ही सिफारिशी को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी |

(३) यदि लोक सभा, राज्य सभा की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार किए गए संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया समझा जाएगा |

(४) यदि लाक सभा, राज्य सभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती हैं तो धन विधेयक, राज्य सभा द्वारा सिफारिश किए गए किसी संशोधन के बिना, दोनों सदनों द्वारा उस रुप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था |

(५) यदि लोक सभा द्वारा पारित और राज्य सभा को उसकी सिफारिशों के लिए पारेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोक सभा को नहीं लौटाया जाता है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा, उस रुप में पारित किया गया समझा जाएगा जिसमें वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था |



अनुच्छेद ११० :-

"धन विधेयक" की परिभाषा :-

(१) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्ही विषयों से संबधित उपबंध है, अर्थात :-

    (क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन ;

    (ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वरा अपने ऊपर ली गई या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन ;

    (ग)भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना ;

    (घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग;

    (ड) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रक्कम को बढाना ;

या

    (च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा ; या

    (छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंकगिक कोई विषय |

(२) कोई विधेयक केवल इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसों की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है |

(३) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक हैं या नहीं तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अंतिम होगा |

(४) जब धन विधेयक अनुच्छेद १०९ के अधीन राज्य सभा को पारोषित किया जाता है और जब वह अनुच्छेद १११ के अधीन अनुमति के लिए राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तब प्रत्येक धन विधेयक पर लोक सभा के अध्यक्ष के हस्ताक्षर सहित यह प्रमाण पृष्ठांकित किया जाएगा कि वह धन विधेयक है |



अनुच्छेद १११ :-

विधेयकों पर अनुमति:-

जब कोई विधेयक संसद् के सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है तब वह राष्ट्रपति के समक्ष  प्रस्तृत किया जाएगा और राष्ट्रपति घोषित करेगा कि वह विधेयक पर अनुमति देता है या अनुमति रोक लेता है :

 परन्तु राष्ट्रपति अनुमति के लिए अपने समक्ष विधेयक नहीं है तो, सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि वे विधेयक को, यद‍ि वह धन विधेयक नहीं हैं तो, सदनों को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा कि वे विधेयक पर या उसके किन्हीं विनिर्दिष्ट उपबंधो पर पुनर्विचार करें और विशिष्टतया किन्हीं ऐसे संशोधनों के पुर:स्थापन की वांछनीयता पर विचार करें जिनकी उसने अपने संदेश में सिफारिश की है और जब विधेयक इस प्रकार लौटा दिया जाता है तब सदन विधेयक पर तद्नुसार पुनर्विचार करेंगे और यदि विधेयक सदनों द्वारा संशोधन सहित या उसके बिना फिर से पारित कर दिया जाता हैं और राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है तो राष्ट्रपति उस पर अनुमति नहीं रोकेगा |



वित्तीय विषयों के संबंध में प्रक्रिया 


अनुच्छेद ११२ :-

वार्षिक वित्तीय विवरण :-

(१) राष्ट्रपति प्रत्येक वित्तीय वर्ष के संबंध में संसद् के दोनों सदनों के समक्ष भारत सरकार की उस वर्ष के लिए प्राक्कलित प्राप्तियों और व्यय का विवरण रखवाएगा जिसे इस भाग में "वार्षिक वित्तीय विवरण" कहा गया है |


(२) वार्षिक वित्तीय विवरण में दिए हुए व्यय के प्राक्कलनों में :-

    (क) इस संविधान में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय के रुप में वर्णित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियां, और 

    (ख) भारत की संचित निधि में से किए जाने के लिए प्रस्थापित अन्य पृथक्-पृथक् दिखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद किया जाएगा |

(३) निम्नलिखित व्यय भारत की संचित निधि पर भारित व्यय होगा, अर्थात :-

    (क) राष्ट्रपति की उपलब्धियां और भत्ते तथा उसके पद से संबंधित अन्य व्यय ;

    (ख) राज्य सभा के सभापति और उपसभापति के तथा लोक सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते ;

(ग) ऐसे ऋृण भार, जिनका दायित्व भारत सरकार पर है, जिनके अंतर्गत ब्याज, निक्षेप निधि भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋृण सेवा और ऋृण मोचन से संबंधित अन्य व्यय हैं ;

(घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन ;

     (ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनकें संबंध में संदेय पेंशन ;

    (iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को या उनके संबंध में दी जाने वाली पेंशन, जो भारत के राज्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करता है या जो (भारत डोमिनियन के राज्यपाल वाले प्रांत) के अतंर्गत किसी क्षेत्र के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से पहले किसी भी समय अधिकारिता का प्रयोग करता था ;

    (ङ) भारत के नियंत्रक-महालेखापरिक्षक को, या उसके संबंध में, संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन ;

    (च) किसी न्यायालय या माध्यस्थम् अधिकरण के निर्णय, डिकी या पंचाट की तुष्टि के लिए अपेक्षित राशियां ;

    (छ) कोई अन्य व्यय जो इस संविधान द्वारा या संसद् द्वारा, विधि द्वारा, इस प्रकार घोषित किया जाता है |



अनुच्छेद ११३ :-

संसद् में प्राक्कलनों के संबंध में प्रक्रिया:-

(१) प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित है वे संसद् है वे संसद् मे मतदान के लिए नही रखे जाएंगे, किन्तु इस खंड की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह संसद् के किसी सदन में उन प्राक्कलनों में से किसी प्राक्कलन पर चर्चा को निवारित करती है |

(२) उक्त प्राक्कलनों में से जितने प्राक्कलन अन्य व्यय से संबधित है वे लोक सभा के समक्ष अनुदानी की मांगो के रुप में रखे जाएंगे और लोक सभा को शक्ति होगी कि वह किसी मांग को अनुमति दे या अनुमति देने से इंकार कर दे अथवा किसी मांग को, उसमे विनिर्दिष्ट रक्कम को कम करके, अनुमति दे |

(३) किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी, अन्यथा नहीं |



अनुच्छेद ११४ :-

विनियोग विधेयक:-

(१) लोक सभा द्वारा अनुच्छेद ११३ के अधीन अनुदान किए जाने के पश्चात्, यथाशक्य शीघ्र, भारत की संचित निधि में से -

(क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार किए गए अनुदानों की, और

(ख) भारत की संचित निधि पर भारित, किन्तु संसद् के समक्ष पहले रखे गए विवरण में दर्शित रक्कम मे किसी भी दश में अनधिक व्यय की, पूर्ति के लिए अपेक्षित सभी धनराशियों के विनियोग का उपबंध करने के लिए विधेयक पुर:स्थापित किया जाएगा |

(२) इस प्रकार किए गए किसी अनुदान की रक्कम में परिवर्तन करने या अनुदान के लक्ष्य को बदलने अथवा भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की रक्कम में परिवर्तन करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे किसी विधेयक में संसद् के किसी सदन में प्रस्थापित नहीं किया जाएगा और पीठासीन व्यक्ति का इस बारे में विनिश्चय अंतिम होगा कि कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह है या नहीं |

(३) अनुच्छेद ११५ और अनुच्छेद ११६ के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत की संचित निधि मे से इस अनुच्छेद के उपबंधो के अनुसार पारित विधि द्वारा किए गए विनियोग के अधीन ही कोई धन निकाला जाएगा, अन्यथा नहीं |



अनुच्छेद ११५ :-

अनुपूरक, अतिरिक्त या अधिक अनुदान :-

(१) यदी :-

(क) अनुच्छेद ११४ के उपबंधो के अनुसार बनाई गई किसी विधि द्वरा किसी विशिष्ट सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिए व्यय किए जाने के लिए प्राधिकृत कोई रक्कम उस वर्ष के प्रयोजनों के लिए अपर्याप्त पाई जाती है या उस वर्ष के वार्षिक वित्तीय विवरण में अनुध्यात न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक या अतिरिक्त व्यय की चालू वित्तीय वर्ष के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या 

(ख) किसी वित्तीय वर्ष के दौरान किसी सेवा पर , उस वर्ष और उस सेवा के लिए अनुदान की गई रक्कम से अधिक कोई धन व्यय हो गया है,

तो राष्ट्रपति, यथास्थिति, संसद् के दोनो सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित रक्कम को दर्शित करने वाला दूसरा विवरण रखवाएगा या लोक सभा में ऐसे अधिक्य के लिए मांग प्रस्तुत करवाएगा |

(२) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संबधित अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद ११२, अनुच्छेद ११३ और अनुच्छेद ११४ के उपबंध वैसे ही प्रभावी होगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण और उसमें वर्णित व्यय या किसी अनुदान की किसी मांग के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय या अनुदान की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी  है |



अनुच्छेद ११६ :-

लेखानुदान, प्रत्ययानुदान और अपवादानुदान:-

(१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधो में किसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को :-

    (क) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिए प्राक्कलित व्यय के संबंध में कोई अनुदान, उस अनुदान के लिए मतदान करने के लिए अनुच्छेद ११३ में विहित प्रक्रिया के पूरा होने तक और उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद ११४ के उपबंधों के अनुसार विधि के पारित होने तक, अग्रिम देने की ;

    (ख) जब किसी सेवा की महत्ता या उसके अनिश्चित रुप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती है जो वार्षिक वित्तीय विवरण में सामान्यतया दिया जाता है तब भारत के संपत्ति स्त्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिए अनुदान करने की ;

    (ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग नही है, ऐसा कोई अपवादानुदान करने की,

शक्ति होगी और जिन प्रयोजनों के लिए उक्त अनुदान किए गए हैं उनके लिए भारत की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की संसद् को शक्ति होगी |

(२) खंड (१) के अधीन किए जाने वाले किसी अनुदान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में अनुच्छेद ११३ और अनुच्छेद ११४ के उपबंध वैसे ही प्रभावी होगे जैसे वे वार्षिक वित्तीय विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में कोई अनुदान करने के संबंध में और भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिए धन का विनियोग प्राधिकृत करने के लिए बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी है |



अनुच्छेद ११७ :-

 वित्त विधेयको के बारे में विशेष उपबंध :-

(१) अनुच्छेद ११० के खंड (१) के उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय के लिए उपबंध करने वाला विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की सिफारिश से ही पुर:स्थापित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं और ऐसा उपबंध करने वाला विधेयक राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा :

परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिए उपबंध करने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिए इस खंड के अधीन सिफारिश की अपेक्षा नहीं होगी |

(२) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह जुर्मानों या अन्य धनीय शास्तियों के अधिरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिए फीसों की या की गई सेवाओं के लिए फीसी की मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नहीं समझा जाएगा कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिए किसी कर के अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमन का उपबंध करता है |

(३) जिस विधेयक को अधिनियमित और प्रवर्तित किए जाने पर भारत की संचित निधि में से व्यय करना पङेगा वह विधेयक संसद् के किसी सदन द्वारा तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिए उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश नहीं की है |



साधारणतया प्रक्रिया


अनुच्छेद ११८ :-

प्रक्रिया के नियम:-

(१) इस संविधान के उपबंधो के अधीन रहते हुए, संसद् का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिए नियम बना सकेगा |

(२) जब तक खंड (१) के अधीन नियम नहीं बनाए जाते है तब तक इस संविधान के प्रांरभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन के विधान-मंडल के संबंध में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे वे ऐसे उपांतरणों और अनुकूलनों के अधीन रहते हुए संसद् के संबंध में प्रभावी होगें जिन्हें, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष उनमें करे |

(३) राष्ट्रपति, राज्य सभा के सभापति और लोक सभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात्, दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों से संबंधित और उनमें परस्पर संचार से संबंधित प्रक्रिया के नियम बना सकेगा |

(४) दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोक सभा का अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति पीठासीन होगा जिसका खंड (३) के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार अवधारण किया जाए |



अनुच्छेद ११९ :-

संसद् में वित्तीय कार्य संबंधी प्रक्रिया का विधि द्वारा विनियमन:-

संसद् वित्तीय कार्य को समय के भीतर पूरा करने के प्रयोजन के लिए किसी वित्तीय विषय से संबंधित या भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करने के लिए किसी विधेयक से संबंधित, संसद् के प्रत्येक  सदन  की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगी तथा यदि और जहां तक इस प्रकार बनाई गई किसी विधि का कोई उपबंध अनुच्छेद ११८ के खंड (१) के अधीन संसद् के किसी सदन द्वारा बनाए गए नियम से या उस अनुच्छेद के खंड (२) के अधीन संसद् के संबंध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अभिभावी होगा |



अनुच्छेद १२० :-

संसद् में प्रयोग की जाने वाली भाषा :-

(१) भाग १७ में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद ३४८ के उपबंधो के अधीन रहते हुए, संसद् में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जाएगा :

परन्तु, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष अथवा उस रुप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो हिन्दी में या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता है, अपनी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा |

(२) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानों "या अंग्रेजी में" शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो |



अनुच्छेद १२१ :-

संसद् में चर्चा पर निर्बन्धन:-

उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के, अपने कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए आचरण के विषय में संसद् में कोई चर्चा इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से उस न्यायाधीश को हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ही होगी, अन्यथा नहीं |



अनुच्छेद १२२ :-

न्यायालयों द्वारा संसद् की कार्यवाहियो की जांच न किया जाना:-

(१) संसद् की किसी कार्यवाही की विधिमान्यता को प्रक्रिया की किसी अभिकथित अनियमितता के आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा |

(२) संसद् का कोई अधिकारी या सदस्य, जिसमें इस संविधान द्वारा या इसके अधीन संसद् में प्रक्रिया या कार्य संचालन का विनियमन करने की अथवा व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियां निहित है, उन शक्तियों के अपने द्वारा प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय की अधिकारिता के अधीन नहीं होगा |



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